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शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता | शाही शायरी
shikayat hai bahut lekin gila achchha nahin lagta

ग़ज़ल

शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता

अतीक़ असर

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शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता
दिलों की बात है कम हौसला अच्छा नहीं लगता

नमी आँखों में सोज़-ए-दिल का उनवान-ए-तकल्लुम है
मगर ख़ामोश अश्कों का सिला अच्छा नहीं लगता

इधर आना न जाना ही अधर गुम-कर्दा राही है
तज़ब्ज़ुब का मुझे ये मरहला अच्छा नहीं लगता

मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
किसी भी एक शय का सिलसिला अच्छा नहीं लगता

बुरा लगता है हम को इक तनासुब का बिगड़ जाना
कुछ ऐसे लोग हैं जिन को भुला अच्छा नहीं लगता

'अतीक़' ऐसा भी जीना कोई जीना है भला आख़िर
न होवे जिस में जोश-ओ-वलवला अच्छा नहीं लगता