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शम्अ' रौशन जिस्म-ए-फ़ानूस-ए-ख़याली में है आज | शाही शायरी
shama raushan jism-e-fanus-e-KHayali mein hai aaj

ग़ज़ल

शम्अ' रौशन जिस्म-ए-फ़ानूस-ए-ख़याली में है आज

मिस्कीन शाह

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शम्अ' रौशन जिस्म-ए-फ़ानूस-ए-ख़याली में है आज
रूह जूँ मिस्ल-ए-मगस मक्ड़ों की जाली में आज

हम नहीं हरगिज़ हुबाब-ए-बहर-ए-इम्काँ दहर में
साने-ए-कौनैन शक्ल-ए-बे-मिसाली में है आज

का'बा-ए-दिल अर्श है हर दम जहाँ रहता हूँ मैं
मेरी पहचानत ये जिस्म-ए-ला-यज़ाली में है आज

नाम सुन कर जो कोई आया है वो पाया हमें
इस्म-ए-आज़म की सिफ़त इस इस्म-ए-आली में है आज

जन्नत-उल-फ़िरदौस में जा कर भला हम क्या करें
कोई भी उस ख़ाना-ए-वीरान-ओ-ख़ाली में है आज

हूर-ओ-ग़िलमान-ए-बहिश्ती याँ मिरे हम-राह हैं
मुल्क-ए-दिल-आबाद अपने हस्ब-ए-हाली में है आज

नेक-ओ-बद यकसाँ है वाजिब मैं यहाँ इम्कान में
चाहिए राहत तो 'मिस्कीं' ख़ुश-ख़िसाली में है आज