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शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को | शाही शायरी
shaiKH ka KHauf hamein hashr ka dhaDka hum ko

ग़ज़ल

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

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शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को
साथ ही इश्क़ के आज़ार ने मारा हम को

मौत कहते हैं जिसे ज़ब्त का ये ख़ब्त न हो
ज़िंदगी पर भी है फ़रियाद का धोका हम को

जाओ हाँ जाओ रक़ीबों की मुरादें बर लाओ
रहने दो रहने दो नाकाम-ए-तमन्ना हम को

हम तो इंसान हैं ऐ ख़िज़्र हमें मरना है
जीने देता नहीं फ़ितरत का तक़ाज़ा हम को

है अभी दूर बहुत दूर हमारी मंज़िल
हुक्म है फ़र्श से ता-अर्श-ए-मुअल्ला हम को

वो निगह बाँध गई दिल में तिलिस्म-ए-उम्मीद
नज़र आती है तमन्ना ही तमन्ना हम को

शहर-ए-उल्फ़त में नहीं तफ़रक़ा-पर्दाज़ 'हफ़ीज़'
कहीं काबा नज़र आया न कलीसा हम को