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शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त | शाही शायरी
shahr mein phirta hai wo mai-KHwar mast

ग़ज़ल

शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त
क्यूँ न हो हर कूचा ओ बाज़ार मस्त

हो गई उस का क़द ओ रुख़्सार देख
सर्व क़ुमरी बुलबुल ओ गुलज़ार मस्त

ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज
बे-तरह आता है वो मय-ख़्वार मस्त

जिस के घर जाता है वो दारू पिए
हो है उस घर के दर-ओ-दीवार मस्त

सर को क़दमों पर धर उस के लोटिए
रात को आए अगर वो यार मस्त

मय-कशो 'हातिम' को मतवाला कहो
ऐसा हम देखा नहीं होशियार मस्त