शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से
तो हँस के बोले अलग बैठिए क़रीने से
सवाब हो कि न हो इस से क्या ग़रज़ ज़ाहिद
मज़ा मिला मुझे तुझ को पिला के पीने से
शब-ए-फ़िराक़ ये एहसान है तसव्वुर का
कि सो रहा हूँ लगा कर किसी को सीने से
फ़लक मिटाएगा मुझ को जो तुम मुकद्दर हो
अदावत उस की बढ़ेगी तुम्हारे कीने से
ग़म-ए-फ़िराक़ में क्या लुत्फ़-ए-ज़िंदगी है 'हफ़ीज़'
हमें तो मौत ही बेहतर है ऐसे जीने से
ग़ज़ल
शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से
हफ़ीज़ जौनपुरी