शाम किनारे उतरा मैं
हो गया रेज़ा रेज़ा मैं
जंगल की वीरानी में
ख़ामोशी से गूँजा मैं
तन्हाई में रौशन हूँ
एक दिया यादों का मैं
सिंध किनारे हूँ 'ख़ुर्शीद'
प्यास-भरा मश्कीज़ा मैं
ग़ज़ल
शाम किनारे उतरा मैं
ख़ुर्शीद रब्बानी
ग़ज़ल
ख़ुर्शीद रब्बानी
शाम किनारे उतरा मैं
हो गया रेज़ा रेज़ा मैं
जंगल की वीरानी में
ख़ामोशी से गूँजा मैं
तन्हाई में रौशन हूँ
एक दिया यादों का मैं
सिंध किनारे हूँ 'ख़ुर्शीद'
प्यास-भरा मश्कीज़ा मैं