शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें
आज वहाँ क़व्वाली होगी 'जौन' चलो दरगाह चलें
अपनी गलियाँ अपने रमने अपने जंगल अपनी हवा
चलते चलते वज्द में आएँ राहों में बे-राह चलें
जाने बस्ती में जंगल हो या जंगल में बस्ती हो
है कैसी कुछ ना-आगाही आओ चलो नागाह चलें
कूच अपना उस शहर तरफ़ है नामी हम जिस शहर के हैं
कपड़े फाड़ें ख़ाक-ब-सर हों और ब-इज़्ज़-ओ-जाह चलें
राह में उस की चलना है तो ऐश करा दें क़दमों को
चलते जाएँ चलते जाएँ या'नी ख़ातिर-ख़्वाह चलें
ग़ज़ल
शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें
जौन एलिया