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सवाद-ए-शाम पे सूरज उतरने वाला है | शाही शायरी
sawad-e-sham pe suraj utarne wala hai

ग़ज़ल

सवाद-ए-शाम पे सूरज उतरने वाला है

रशीद निसार

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सवाद-ए-शाम पे सूरज उतरने वाला है
ठहर भी जा कि ये मंज़र उभरने वाला है

मिलेंगे दाग़ सितारे चराग़-ओ-शबनम भी
ग़मों की रात का चेहरा निखरने वाला है

चलो जुलूस की सूरत में ज़िंदगी वालो
ज़रा सी देर में लम्हा गुज़रने वाला है

कोई तो दहर में ज़िंदा रहे ख़ुदावंदा
तिरे जहान में इंसान मरने वाला है

वो अपनी ज़ात के मंशूर के तनाज़ुर में
इक एहतिमाम से एलान करने वाला है

'निसार' ज़ीस्त के दोज़ख़ में जी रहा है मगर
वो अपनी आग के शो'लों से डरने वाला है