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सौ रहा था तो शोर बरपा था | शाही शायरी
sau raha tha to shor barpa tha

ग़ज़ल

सौ रहा था तो शोर बरपा था

रज़ी तिर्मिज़ी

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सौ रहा था तो शोर बरपा था
उठ के देखा तो मैं अकेला था

ख़ाक पर मेरे ख़्वाब बिखरे थे
और मैं रेज़ा रेज़ा चुनता था

चार जानिब वजूद की दीवार
अपनी आवाज़ मैं ही सुनता था

उम्र भर बूँद बूँद को तरसे
सामने घर के एक दरिया था

लब-ए-दरिया खड़े रहे दोनों
वो भी प्यासा था मैं भी प्यासा था