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सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते | शाही शायरी
sar jis pe na jhuk jae use dar nahin kahte

ग़ज़ल

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते

बिस्मिल सईदी

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सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते

क्या अहल-ए-जहाँ तुझ को सितमगर नहीं कहते
कहते तो हैं लेकिन तिरे मुँह पर नहीं कहते

काबे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
बुत-ख़ाने में काफ़िर को भी काफ़िर नहीं कहते

रिंदों को डरा सकते हैं क्या हज़रत-ए-वाइज़
जो कहते हैं अल्लाह से डर कर नहीं कहते

हर बार नए शौक़ से है अर्ज़-ए-तमन्ना
सौ बार भी हम कह के मुकर्रर नहीं कहते

मय-ख़ाने के अंदर भी वो कहते नहीं मय-ख़्वार
जो बात कि मय-ख़ाने के बाहर नहीं कहते

कहते हैं मोहब्बत फ़क़त उस हाल को 'बिस्मिल'
जिस हाल को हम उन से भी अक्सर नहीं कहते