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सन्नाटों के जंगल में खोई हुई ख़ुशबू थी | शाही शायरी
sannaTon ke jangal mein khoi hui KHushbu thi

ग़ज़ल

सन्नाटों के जंगल में खोई हुई ख़ुशबू थी

मोनी गोपाल तपिश

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सन्नाटों के जंगल में खोई हुई ख़ुशबू थी
आहट जो सुनी कोई सहमी हुई ख़ुशबू थी

उस घर में गुलाबों से कुछ राग महकते थे
माहौल में जादू था गाती हुई ख़ुशबू थी

गुफ़्तार में फूलों की बरसात का आलम था
पहना हुआ गुलशन था ओढ़ी हुई ख़ुशबू थी

डाली से कोई मौसम जियूँ टूट के गिर जाए
बे-रब्त हवाओं में उड़ती हुई ख़ुशबू थी

तुम ने कभी सोचा है तुम ने कभी जाना है
कहते हैं 'तपिश' जिस को बिखरी हुई ख़ुशबू थी