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संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ | शाही शायरी
sang-e-chehra-numa to main bhi hun

ग़ज़ल

संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ

शबनम रूमानी

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संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ
देखिए आइना तो मैं भी हूँ

बैअत-ए-हुस्न की है मैं ने भी
साहब-ए-सिलसिला तो मैं भी हूँ

मुझ पे हँसता है क्यूँ सितारा-ए-सुब्ह
रात भर जागता तो मैं भी हूँ

कौन पहुँचा है दश्त-ए-इम्काँ तक
वैसे पहुँचा हुआ तो मैं भी हूँ

आईना है सभी की कमज़ोरी
तुम ही क्या ख़ुद-नुमा तो मैं भी हूँ

मेरा दुश्मन है दूसरा हर शख़्स
और वो दूसरा तो मैं भी हूँ