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सदमे जो कुछ हों दिल पे सहिए | शाही शायरी
sadme jo kuchh hon dil pe sahiye

ग़ज़ल

सदमे जो कुछ हों दिल पे सहिए

हफ़ीज़ जौनपुरी

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सदमे जो कुछ हों दिल पे सहिए
पूछे भी कोई तो चुप ही रहिए

बे-सब्र ही कह के रुक गए क्यूँ
कहिए कहिए कुछ और कहिए

आख़िर कब तक ये बे-नियाज़ी
इंसाफ़ से आप ही न कहिए

मर ही जाने की बात है ये
मेरे लिए आप ज़ुल्म सहिए

आँखों में ग़ुरूर है किसी का
किस तरह किसी से दब के रहिए

सुनने की जो बात हो वो सुनिए
कहने की जो बात हो वो कहिए

रोने को पड़ी है उम्र सारी
छालों की तरह न फूट बहिए

सुनिए जो 'हफ़ीज़' की मुसीबत
रो दीजिए आप में न रहिए