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सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया | शाही शायरी
sadma har-chand tere jaur se jaan par aaya

ग़ज़ल

सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया
तिस पे शिकवा न कभी मेरी ज़बाँ पर आया

रास्त-केशों की तुफ़-ए-आह से डर ऐ सरकश
तीर फिरता नहीं जिस वक़्त निशाँ पर आया

मौसम-ए-शेब में बे-फ़ाएदा है लअब-ए-शबाब
कब समर देवे है जो नख़्ल ख़िज़ाँ पर आया

दिल-ए-पुर-ख़ूँ को मिरे ग़ुंचा-ए-तस्वीर की तरह
लब-ए-वाशुद न कभी राज़-ए-निहाँ पर आया

चश्म-ए-अंजुम पे नहीं अब्र से वो रोज़-ए-सियाह
जो मिरे दीदा-ए-ख़ूँ-नाब-चकाँ पर आया

रात को देख के ऐ माह तुझे ग़ैर के साथ
त'अना-ज़न दिल का मिरे गुल के कताँ पर आया

हो के उस्ताद दबिस्तान-ए-सुख़न में 'सौदा'
शेर के क़ाएदा दानान-ए-जहाँ पर आया