सच अगर पूछो तो ना-पैदा है यक-रू आश्ना
सारे आलम में जो हों शायद तो यक दो आश्ना
हाज़िर ओ ग़ाएब हो यकसाँ ज़ाहिर ओ बातिन हो साफ़
इस तरह का कम नज़र आया है यकसू आश्ना
हम वो मुख़्लिस हैं कि आँखें देखते गुज़री है उम्र
जी निकल जावे जो हो हम से कज-अबरू आश्ना
सारे आलम से करूँ मैं तर्क रस्म-ए-दोस्ती
मुझ से होवे ऐ मिरे दुश्मन अगर तू आश्ना
किस के कूचे में तू हो निकली थी हाँ सच कह नसीम
तुझ में जो बू है सो है मुद्दत से ये बू आश्ना
जाँ-ब-लब हूँ मैं तो इन यारों की ख़ुश-ख़ल्क़ी को देख
है मआज़-अल्लाह जो हो सोहबत में बद-ख़ू आश्ना
एक भी हम ने न देखा दोस्त 'हातिम' बा'द-ए-मर्ग
है तकल्लुफ़-बर-तरफ़ कू यार और कू आश्ना
ग़ज़ल
सच अगर पूछो तो ना-पैदा है यक-रू आश्ना
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम