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सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी | शाही शायरी
sab umr to jari nahin rahta hai safar bhi

ग़ज़ल

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

बिस्मिल आग़ाई

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सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी
आता है किसी दिन तो बशर लौट के घर भी

मंज़िल तो बड़ी शय न मिली राहगुज़र भी
बाँधा था बड़े शौक़ से क्या रख़्त-ए-सफ़र भी

अंदर से फफोंदे हुए दीवार भी दर भी
देखे हैं बड़े लोगों के हम ने बड़े घर भी

हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम
अब घर सा नज़र आने लगा है मिरा घर भी

तन्हाई-पसंद इतना भी मत बन ये समझ ले
तन्हाई में है चैन तो तन्हाई में डर भी

पागल है पता पूछ रहा है मिरे घर का
क्या ख़ाना-ब-दोशों का हुआ करता है घर भी