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सब मुझे बे-सर-ओ-पा कहते हैं | शाही शायरी
sab mujhe be-sar-o-pa kahte hain

ग़ज़ल

सब मुझे बे-सर-ओ-पा कहते हैं

मीर अली औसत रशक

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सब मुझे बे-सर-ओ-पा कहते हैं
ऐ मोहब्बत इसे क्या कहते हैं

जो कुछ उस बुत को बरहमन ने कहा
हम कहीं उस से सिवा कहते हैं

मैं जो रोऊँ उसे कहते हैं मरज़
वो हँसे उस को दवा कहते हैं

झुक के क़ातिल को मुनासिब है सलाम
इस को तस्लीम-ओ-रज़ा कहते हैं

क्या हुआ कहिए जो उस बुत को ख़ुदा
लोग बंदों को ख़ुदा कहते हैं

कातिब आ जाए तो क़ासिद न मिले
उसे क़िस्मत का लिखा कहते हैं

'रश्क' से बात भी करते नहीं आप
कहिए इस बात को क्या कहते हैं