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सब के लिए सवाल ये कब है कि क्या न हो | शाही शायरी
sab ke liye sawal ye kab hai ki kya na ho

ग़ज़ल

सब के लिए सवाल ये कब है कि क्या न हो

रईस रामपुरी

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सब के लिए सवाल ये कब है कि क्या न हो
उन को तो मुझ से ज़िद है कि मेरा कहा न हो

उन को मिरा वो बज़्म में छुप-छुप के देखना
और ये भी देखना कि कोई देखता न हो

हर इक से पूछता भी हूँ उन का पता मगर
दिल ये भी चाहता है किसी को पता न हो