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साया-ए-ज़ुल्फ़ सियह-फ़ाम कहाँ तक पहुँचे | शाही शायरी
saya-e-zulf siyah-fam kahan tak pahunche

ग़ज़ल

साया-ए-ज़ुल्फ़ सियह-फ़ाम कहाँ तक पहुँचे

क़तील शिफ़ाई

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साया-ए-ज़ुल्फ़ सियह-फ़ाम कहाँ तक पहुँचे
जाने ये सिलसिला-ए-शाम कहाँ तक पहुँचे

दूर उफ़ुक़ पार सही पा तो लिया है तुझ को
देख हम ले के तिरा नाम कहाँ तक पहुँचे

ये सिसकती हुई रातें ये बिलकते मंज़र
हम भी ऐ साया-ए-गुलफ़ाम कहाँ तक पहुँचे

न कहीं साया-ए-गुल है न कहीं ज़िक्र-ए-हबीब
और अब गर्दिश-ए-अय्याम कहाँ तक पहुँचे

हम तो रुस्वा थे मगर उन की नज़र भी न बची
हम पे आए हुए इल्ज़ाम कहाँ तक पहुँचे

मुतमइन गर्मी-ए-एहसास-ए-जफ़ा से भी नहीं
दिल को पहुँचे भी तो आराम कहाँ तक पहुँचे

उन की आँखों को दिए थे जो मिरी आँखों ने
किस से पूछूँ कि वो पैग़ाम कहाँ तक पहुँचे