सावन की पुर्वाई ने क्या दुखती चोट दिखाई है
कैसे आँसू उमडे हैं जब याद तुम्हारी आई है
आँख से ओझल हो कर दिल को अपनी याद दिलाई है
दिल ही में आ बैठे हो ये और क़यामत ढाई है
आहें सर्द हुई जाती हैं तुम आए हो या सुब्ह हुई
चाँद की रंगत फीकी है तारों पे उदासी छाई है
इक सन्नाटा सा तारी है चार-पहर के तड़के से
ख़ैर तो है ये आज मरीज़-ए-हिज्र ने क्या ठहराई है
दुनिया का दस्तूर यही है दिल यूँ कब तक रोएगा
इन अच्छी सूरत वालों ने किस से पीत निभाई है
बादल चीख़ उठा है बिजली टूट पड़ी है थर्रा कर
जब हम ने अपनी बरसी-बरसाई आँख उठाई है
जिस्म के अंदर दिल की बेचैनी से ये मा'लूम हुआ
इस घर में सब चीज़ें अपनी हैं ये चीज़ पराई है
अब मरना भी मुश्किल है वो पूछ रहे हैं बालीं पर
किस ने उस को याद किया है कैसी हिचकी आई है
तुम आख़िर क्यूँ कुढ़ते हो 'तालिब' के रोने-धोने पर
दुनिया इस पर हँसती है सब कहते हैं सौदाई है

ग़ज़ल
सावन की पुर्वाई ने क्या दुखती चोट दिखाई है
तालिब बाग़पती