EN اردو
साइल के लबों पर है दुआ और तरह की | शाही शायरी
sail ke labon par hai dua aur tarah ki

ग़ज़ल

साइल के लबों पर है दुआ और तरह की

इक़बाल कैफ़ी

;

साइल के लबों पर है दुआ और तरह की
अफ़्लाक से आती है सदा और तरह की

है ज़ीस्त अगर जुर्म तो ऐ मुंसिफ़-ए-आलम
जुर्म और तरह का है सज़ा और तरह की

इस दिल में है मफ़्हूम-ए-करम और तरह का
उस दिल में है तफ़्हीम-ए-वफ़ा और तरह की

फूलों का तबस्सुम भी वो पहला सा नहीं है
गुलशन में भी चलती है हवा और तरह की

देते हैं फ़क़ीरों को सज़ा आज भी 'कैफ़ी'
लोग और तरह से तो ख़ुदा और तरह की