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साए को धूप धूप को साया बना लिया | शाही शायरी
sae ko dhup dhup ko saya bana liya

ग़ज़ल

साए को धूप धूप को साया बना लिया

ख़ुर्शीद रब्बानी

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साए को धूप धूप को साया बना लिया
इक लम्हा-ए-विसाल ने क्या क्या बना लिया

इक शहर-ए-ना-शनास में जाने की देर थी
बेगानगी ने मुझ को तमाशा बना लिया

आवार्गान-ए-शौक़ का रस्ते में था हुजूम
मैं ने मगर हुजूम में रस्ता बना लिया

ख़्वाबों की मैं ने एक इमारत बनाई और
यादों का उस में एक दरीचा बना लिया

इतनी सी बात है कि उसे मिल नहीं सका
उस ने बढ़ा के बात को झगड़ा बना लिया