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रूठे हुओं को अपने मनाने चले थे हम | शाही शायरी
ruThe huon ko apne manane chale the hum

ग़ज़ल

रूठे हुओं को अपने मनाने चले थे हम

ख़ुर्शीदुल इस्लाम

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रूठे हुओं को अपने मनाने चले थे हम
बिगड़ी हुई थी बात बनाने चले थे हम

क्या कहिए आसमान था वो या ज़मीन थी
जिस पर गुलों का नक़्श बिठाने चले थे हम

देखा उन्हें क़रीब से हम ने तो रो दिए
जिन बस्तियों को आग लगाने चले थे हम

दुनिया के नाज़ देख के हैरान रह गए
गोया उसी के नाज़ उठाने चले थे हम

वीरानियों ने बढ़ के गले से लगा लिया
ले कर दिलों में कैसे ख़ज़ाने चले थे हम

देखा जो आप अपने लिए ग़ैर हो गए
ग़ैरों को आइना तो दिखाने चले थे हम