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रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर | शाही शायरी
ruh ko aaj naz hai apna waqar dekh kar

ग़ज़ल

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

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रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर
उस ने चढ़ाईं तेवरियाँ मेरा क़रार देख कर

क़स्द-ए-गिला न था मगर हश्र में शौक़-ए-जोश से
हाथ मिरा न रुक सका दामन-ए-यार देख कर

देख के एक बार उन्हें दिल से तो हाथ धो चुके
देखिए क्या गुज़रती है दूसरी बार देख कर

आते हैं वो तो पहले ही रंज से साफ़ हो रहूँ
आ के कहीं पलट न जाएँ दिल में ग़ुबार देख कर

वस्ल से गुज़रे ऐ ख़ुदा हाँ ये शुगून चाहिए
सुब्ह को हम उठा करें रू-ए-निगार देख कर

काबा को जा न 'शौक़' अभी निय्यत-ए-ज़िंदगी ब-ख़ैर
हम भी चलेंगे तेरे साथ अब की बहार देख कर