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रुत ने रिवायत के रुख़ बदले हर मसऊद सऊद गया | शाही शायरी
rut ne riwayat ke ruKH badle har masud saud gaya

ग़ज़ल

रुत ने रिवायत के रुख़ बदले हर मसऊद सऊद गया

नासिर शहज़ाद

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रुत ने रिवायत के रुख़ बदले हर मसऊद सऊद गया
सदक़ों से मफ़क़ूद हुए दिल मा'बद से मा'बूद गया

दो फ़सलें दो नद्दी किनारे आपस में क्या उन का रिश्ता
घर में गिरी जब इमली पक कर बाग़ से तब अमरूद गया

मौत मोहब्बत की वर-माला चिता स्वयंवर आग दोशाला
प्यार पिया की प्रीत का प्यासा नार अन्हार में कूद गया

चाटी और चूल्हा सब औंधे बे-मसरफ़ बैठी है गोरी
भोर भए बस्ती से बिक कर शहर की जानिब दूध गया

छोड़ के कविता क्या कुछ पाया दोस्त तुझे और नाम गँवाया
ये दिन ये सिन हुए अकारत ये जीवन बे-सूद गया

रंग दुकानों की रा'नाई ख़ुशबू दरगाहों की ज़ीनत
ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर अब बन अम्बर सेज सुहाग से ऊद गया

सखियाँ संगत दही पकौड़े हाली खेतियाँ खाद के तोड़े
दूर तलक इन क़रियों क़स्बों बरखा रुतों का रूद गया