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रिश्ता कैसे टूटता है ख़्वाब से ताबीर का | शाही शायरी
rishta kaise TuTta hai KHwab se tabir ka

ग़ज़ल

रिश्ता कैसे टूटता है ख़्वाब से ताबीर का

क़ैसर सिद्दीक़ी

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रिश्ता कैसे टूटता है ख़्वाब से ताबीर का
आओ दिखलाऊँ तुम्हें ये खेल भी तक़दीर का

ऐ मुसव्विर है यही हासिल तिरी तहरीर का
हुस्न ख़ुद ही पैरहन है हुस्न की तस्वीर का

बन गया है इस्तिआ'रा हुस्न-ए-आलम-गीर का
आइना-दर-आइना चेहरा मिरी तहरीर का

जैसे जैसे क़ैद की मीआ'द घटती जाएगी
तंग होता जाएगा हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का

ये किताब-ए-दिल है क़ुरआन-ए-मोहब्बत है हुज़ूर
मरहला दर-पेश है इस हुस्न की तफ़्सीर का

सच अगर पूछो तो मेरे पीर-ओ-मुर्शिद हैं यही
मैं अक़ीदत-मंद हूँ 'क़ैसर' जनाब-ए-मीर का