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रिश्ता बहाल काश फिर उस की गली से हो | शाही शायरी
rishta bahaal kash phir uski gali se ho

ग़ज़ल

रिश्ता बहाल काश फिर उस की गली से हो

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

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रिश्ता बहाल काश फिर उस की गली से हो
जी चाहता है इश्क़ फिर उसी से हो

ख़्वाहिश है पहुँचूँ इश्क़ के मैं उस मक़ाम पर
जब उन का सामना मेरी दीवानगी से हो

अब मेरे सर पे सब को हँसाने का काम है
मैं चाहता हूँ काम ये संजीदगी से हो

कपड़ों की वज्ह से मुझे कमतर न आंकिए
अच्छा हो मेरी जाँच-परख शाइ'री से हो