रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
ताक वाली कोई बड़ा घर ताक
सूझता क्या है तुझ को नासेह ख़ाक
वो मसल है कि आँखों आगे नाक
फेर ले जिस तरफ़ ग़रज़ चाहे
आदमी बन गया है मोम की नाक
लो जुनूँ की सवारी आ पहुँची
मेरे दामन पे चल रहा है चाक
ज़र-गरी अक़्ल की मआज़-अल्लाह
अब खटाई में पड़ गया इदराक
हो गया सब लिहाज़ अदब बे-बाक़
इश्क़ बे-ताब हुस्न है बेबाक
गर्म-जोशी थी आबला-पाई
अब न वो तप न वो तपक न तपाक
शेर में आ गया है अब इल्हाम
लाओ 'नातिक़' लिखें सपाक-ओ-नमाक

ग़ज़ल
रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
नातिक़ गुलावठी