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रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है | शाही शायरी
rawish mein gardish-e-sayyargan se achchhi hai

ग़ज़ल

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है
ज़मीं कहीं की भी हो आसमाँ से अच्छी है

जो हर्फ़-ए-हक़ की हिमायत में हो वो गुम-नामी
हज़ार वज़्अ' के नाम-ओ-निशाँ से अच्छी है

अजब नहीं कल उसी की ज़बान खींची जाए
जो कह रहा है ख़मोशी ज़बाँ से अच्छी है

बस एक ख़ौफ़ कहीं दिल ये बात मान न जाए
ये ख़ाक-ए-ग़ैर हमें आशियाँ से अच्छी है

हम ऐसे गुल-ज़दगाँ को बहार-ए-यक-साअत
निगार-ख़ाना-ए-अहद-ए-ख़ज़ाँ से अच्छी है