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रौशनी दर रौशनी है उस तरफ़ | शाही शायरी
raushni dar raushni hai us taraf

ग़ज़ल

रौशनी दर रौशनी है उस तरफ़

मुनीर नियाज़ी

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रौशनी दर रौशनी है उस तरफ़
ज़िंदगी दर ज़िंदगी है उस तरफ़

जिन अज़ाबों से गुज़रते हैं यहाँ
उन अज़ाबों की नफ़ी है उस तरफ़

इक रिहाइश ख़्वाहिश-ए-दिल की तरह
इक नुमाइश ख़्वाब की है उस तरफ़

जो बिखर कर रह गया है इस जगह
हुस्न की इक शक्ल भी है उस तरफ़

जुस्तुजू जिस की यहाँ पर की 'मुनीर'
उस से मिलने की ख़ुशी है उस तरफ़