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रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं | शाही शायरी
raunaqen aabaadiyan kya kya chaman ki yaad hain

ग़ज़ल

रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं

तालिब अली खान ऐशी

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रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं
बू-ए-गुल की तरह हम गुलशन के ख़ाना-ज़ाद हैं

जल्वा-फ़रमाई का मुज़्दा किस ने भेजा है कि आज
दीदा-ओ-दिल हम-दिगर सर्फ़-ए-मुबारकबाद हैं

किस की मिज़्गाँ ने हमारे साथ काविश की शुरूअ'
ख़ून के क़तरे रगों में नश्तर-ए-फ़स्साद हैं

याँ रज़ा महबूब की मंज़ूर-ए-ख़ातिर है फ़क़त
वस्ल हो या हिज्र हो हर अम्र में हम शाद हैं

कर चुका 'ऐशी' तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-का'बा का क़स्द
जब तलक हिन्दोस्ताँ का मय-कदा आबाद है