रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं
बू-ए-गुल की तरह हम गुलशन के ख़ाना-ज़ाद हैं
जल्वा-फ़रमाई का मुज़्दा किस ने भेजा है कि आज
दीदा-ओ-दिल हम-दिगर सर्फ़-ए-मुबारकबाद हैं
किस की मिज़्गाँ ने हमारे साथ काविश की शुरूअ'
ख़ून के क़तरे रगों में नश्तर-ए-फ़स्साद हैं
याँ रज़ा महबूब की मंज़ूर-ए-ख़ातिर है फ़क़त
वस्ल हो या हिज्र हो हर अम्र में हम शाद हैं
कर चुका 'ऐशी' तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-का'बा का क़स्द
जब तलक हिन्दोस्ताँ का मय-कदा आबाद है

ग़ज़ल
रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं
तालिब अली खान ऐशी