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रौ भटकने लगे जब ख़यालात की | शाही शायरी
rau bhaTakne lage jab KHayalat ki

ग़ज़ल

रौ भटकने लगे जब ख़यालात की

फ़ातिमा वसीया जायसी

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रौ भटकने लगे जब ख़यालात की
मंज़िलें हैं वहीं पर कमालात की

किस लिए आए पूछा हमें किस लिए
क्या ख़बर हो गई उन को हालात की

हम तो चुप रह गए कुछ कहा भी नहीं
मुस्कुरा कर अगर उस ने कुछ बात की

है तअ'ज्जुब कि दामन भिगोया नहीं
आँसुओं की मगर उस ने बरसात की

प्यार ही प्यार हो कोई मतलब न हो
क़द्र लेकिन कहाँ ऐसे जज़्बात की

जिन को पा कर 'वसीया' न फिर खो सके
है तलाश आज भी ऐसे लम्हात की