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रस्ता भी तिरी सम्त था घर तेरी तरफ़ था | शाही शायरी
rasta bhi teri samt tha ghar teri taraf tha

ग़ज़ल

रस्ता भी तिरी सम्त था घर तेरी तरफ़ था

ख़्वाज़ा रज़ी हैदर

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रस्ता भी तिरी सम्त था घर तेरी तरफ़ था
अब जा के खुला मेरा सफ़र तेरी तरफ़ था

आँगन था मिरा और न दर-ओ-बाम थे मेरे
मैं धूप में था साया-ए-दर तेरी तरफ़ था

महफ़िल तुझे बस छोड़ के जाने के लिए थी
इक मैं ही फ़क़त ख़ाक-बसर तेरी तरफ़ था

उजलत में न कर तर्क-ए-तअल्लुक़ की शिकायत
दिल तेरी तरफ़ याद तो कर तेरी तरफ़ था

आईने में और आब-ए-रवाँ में था तिरा अक्स
शायद कि मिरा दीदा-ए-तर तेरी तरफ़ था

तू मौसम-ए-गुल में भी गुरेज़ाँ रहा मुझ से
मैं शाख़-ए-बुरीदा था मगर तेरी तरफ़ था

मैं तेरे हवाले से रहा शहर में मातूब
जो मेरा हुनर था वो हुनर तेरी तरफ़ था