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रक़्स-ए-बिस्मिल की मिरे दिल को अदा भी आए | शाही शायरी
raqs-e-bismil ki mere dil ko ada bhi aae

ग़ज़ल

रक़्स-ए-बिस्मिल की मिरे दिल को अदा भी आए

जावेद नसीमी

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रक़्स-ए-बिस्मिल की मिरे दिल को अदा भी आए
मुझ से बिछड़ो तो तड़पने का मज़ा भी आए

आलम-ए-हब्स है कुछ ठंडी हवा भी आए
याद ऐसे में तिरी कोई वफ़ा भी आए

चंद लम्हों को हटा अपनी अना के पर्दे
खिड़कियाँ खोल तो कुछ ताज़ा हवा भी आए

अब कहाँ से तुम्हें लौटाएँ तुम्हारे वो ख़ुतूत
हम तो कब का उन्हें दरिया में बहा भी आए