रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए
हम ने जिस राह को छोड़ा फिर उसे छोड़ दिया
अब न जाएँगे उधर चाहे ज़माना जाए
मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है
हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए
मैं गुनाहों का तरफ़-दार नहीं हूँ फिर भी
रात को दिन की निगाहों से न देखा जाए
कुछ बड़ी सोचों में ये सोचें भी शामिल हैं 'वसीम'
किस बहाने से कोई शहर जलाया जाए
ग़ज़ल
रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
वसीम बरेलवी