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रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास | शाही शायरी
rahte hain is tarah se gham-o-yas aas-pas

ग़ज़ल

रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास

नातिक़ गुलावठी

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रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास
मैं उन से दूर दूर तो ये मेरे पास पास

ये भी नशे में क्यूँ न मिरे साथ चूर हो
साक़ी ख़ुदा के वास्ते रख दे गिलास पास

फिर चाक-दामनी की हमें क़द्र क्यूँ न हो
जब और दूसरा नहीं कोई लिबास पास

चकरा रहा है कूचा-ए-गेसू में जा के दिल
मंडला रही है मौत मुसाफ़िर के आस-पास

'नातिक़' ख़ुदा की शान कि अपना नहीं कोई
होने को यूँ तो सारी ख़ुदाई है आस-पास