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रहगुज़ारों में रौशनी के लिए | शाही शायरी
rahguzaron mein raushni ke liye

ग़ज़ल

रहगुज़ारों में रौशनी के लिए

अय्यूब रूमानी

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रहगुज़ारों में रौशनी के लिए
ले के निकले हैं आँधियों में दिए

ज़ाइक़ा तल्ख़ है मोहब्बत का
आदमी ज़हर-ए-ग़म पिए न पिए

दिल में यादों के रत-जगे जैसे
टिमटिमाते हूँ मरघटों के दिए

दिल में तूफ़ान हैं छुपाए हुए
हम तो बैठे हैं अपने होंट सिए

कोई तुझ सा नज़र नहीं आता
दिल ने सौ रंग इंतिख़ाब किए

दर-ब-दर शहर में फिरे यारो
अपने काँधे पे अपनी लाश लिए

दिल की दिल में रहें तमन्नाएँ
आँखों आँखों में कितने अश्क पिए

जान प्यारी हमें भी थी 'अय्यूब'
अपनी ख़ातिर मगर कभी न जिए