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रहे है रू-कश-ए-निश्तर हर आबला दिल का | शाही शायरी
rahe hai ru-kash-e-nishtar har aabla dil ka

ग़ज़ल

रहे है रू-कश-ए-निश्तर हर आबला दिल का

ममनून निज़ामुद्दीन

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रहे है रू-कश-ए-निश्तर हर आबला दिल का
ये हौसला है कोई बल्बे-हौसला दिल का

अबस नहीं है ये वाबस्ता-ए-परेशानी
किसी की ज़ुल्फ़ को पहुँचे है सिलसिला दिल का

हुजूम-ए-ग़म्ज़ा-ओ-ख़ैल-ए-करिश्मा लश्कर-ए-नाज़
अजब सिपाह से ठहरा मुक़ाबला दिल का

कहूँ मैं क्या कि हुआ कैसे बे-जगह माइल
है अपने बख़्त का शिकवा नहीं गिला दिल का

शब-ए-फ़िराक़ ने छोड़ा न सब्र-ओ-ताब-ए-शकेब
लगी ये आग कि अस्बाब सब जला दिल का