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रात हम ने जहाँ बसर की है | शाही शायरी
raat humne jahan basar ki hai

ग़ज़ल

रात हम ने जहाँ बसर की है

रसा चुग़ताई

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रात हम ने जहाँ बसर की है
ये कहानी उसी शजर की है

ये सितारे यहाँ कहाँ से आए
ये तो दहलीज़ मेरे घर की है

नींद क्या कीजिए कि आँखों में
इक नई जंग ख़ैर ओ शर की है

मेरे कच्चे मकान के अंदर
आज तक़रीब चश्म-ए-तर की है

हिज्र की शब गुज़र ही जाएगी
ये उदासी तो उम्र भर की है

इश्क़ अपनी जगह मगर हम ने
मुंतख़ब और ही डगर की है

उठ रहा है धुआँ मिरे घर में
आग दीवार से उधर की है

हम ने अपने वजूद की चादर
तंग अपने गुमान पर की है

वो सितारा-शनास ऐसा था
या किसी ने उसे ख़बर की है

जा रहे हो किधर 'रसा' मिर्ज़ा
देखते हो हवा किधर की है