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रास्ते ज़ीस्त के दुश्वार नज़र आते हैं | शाही शायरी
raste zist ke dushwar nazar aate hain

ग़ज़ल

रास्ते ज़ीस्त के दुश्वार नज़र आते हैं

जौहर ज़ाहिरी

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रास्ते ज़ीस्त के दुश्वार नज़र आते हैं
लोग उल्फ़त से भी बेज़ार नज़र आते हैं

जिस को देखो वो ख़रीदार हुआ है उन का
हर तरफ़ मिस्र के बाज़ार नज़र आते हैं

बल है अबरू पे नज़र तेज़ ख़ुदा ख़ैर करे
आज कुछ हश्र के आसार नज़र आते हैं

मंज़िल-ए-इश्क़ की राहें हैं बहुत ही दुश्वार
हर क़दम पर नए आज़ार नज़र आते हैं

क्या कहूँ इक तिरे जल्वे के मुक़ाबिल ऐ दोस्त
चश्म-ओ-दिल दोनों ही बेकार नज़र आते हैं

याद आ जाते हैं वो जब भी हमें ऐ 'जौहर'
हर तरफ़ मतला-ए-अनवार नज़र आते हैं