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राही तरफ़-ए-मुल्क-ए-अदम होई चुका था | शाही शायरी
rahi taraf-e-mulk-e-adam hoi chuka tha

ग़ज़ल

राही तरफ़-ए-मुल्क-ए-अदम होई चुका था

तनवीर देहलवी

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राही तरफ़-ए-मुल्क-ए-अदम होई चुका था
तू आ गया मैं वर्ना सनम होई चुका था

बिठलाती नज़ाकत न इसे गर दम-ए-रफ़्तार
पामाल ये दिल ज़ेर-ए-क़दम होई चुका था

सरगर्म-ए-सुख़न मुझ से जो वो आ के न होता
ठंडा मैं तह-ए-तेग़-ए-सितम होई चुका था

देखा बुत-ए-नौ-ख़त ने जो मुझ को तो किया चाक
नामा तो रक़ीबों को रक़म होई चुका था

वो जीत गए पाँसा-ए-तक़दीर से 'तनवीर'
पास उन के तो एक एक दिरम होई चुका था