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राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे | शाही शायरी
rah-e-ulfat mein mile aise bhi diwane mujhe

ग़ज़ल

राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे

अली जव्वाद ज़ैदी

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राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे
जो मआल-ए-दोस्ती आए थे समझाने मुझे

इश्क़ की हल्की सी पहली आँच ही में जल बुझे
क्या भला दर्द-ए-वफ़ा देंगे ये परवाने मुझे

ये तो कहिए बे-ख़ुदी से मिल गई कुछ आगही
वर्ना धोका दे दिया था चश्म-ए-बीना ने मुझे

ना-मुरादी लूट ही लेती मता-ए-आरज़ू
इक सहारा दे दिया एहसास-ए-फ़र्दा ने मुझे

किस से कहता दिल की बातें किस से सुनता उन का राज़
बज़्म में तो सब नज़र आते हैं बेगाने मुझे

तौबा तौबा ना-उम्मीदी की ख़याल-आराइयाँ
देखते हों जैसे ख़ुद ललचा के पैमाने मुझे

मेरा इक अदना सा परतव है निज़ाम-ए-काएनात
क्या समझ रक्खा है इस महदूद दुनिया ने मुझे

जब कभी देखा है ऐ 'ज़ैदी' निगाह-ए-ग़ौर से
हर हक़ीक़त में मिले हैं चंद अफ़्साने मुझे