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क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने | शाही शायरी
qubul kar ke tera gham KHushi KHushi maine

ग़ज़ल

क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने

हमीद नागपुरी

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क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने
तिरे जमाल को बख़्शी है ज़िंदगी मैं ने

बस इक निगाह-ए-तवज्जोह पे इस तरह ख़ुश हूँ
कि जैसे दौलत-ए-कौनैन लूट ली मैं ने

धड़क रहा था मिरे हर-नफ़स में दिल उन का
सुनी क़रीब से आवाज़ दूर की मैं ने

ज़माना ता-ब-अबद उन को भर नहीं सकता
जिगर पे खाए हैं वो ज़ख़्म-ए-दोस्ती मैं ने

तिरे जमाल की सर-मस्तियों में गुम हो कर
हर एक साअत-ए-हस्ती गुज़ार दी मैं ने

ख़ुदा-ए-दो-जहाँ इस जुर्म को मुआ'फ़ करे
उड़ाई है लब-ए-गुल-रंग की हँसी मैं ने

'हमीद' मुझ को ज़माना भुला नहीं सकता
बना लिया है मोहब्बत को ज़िंदगी मैं ने