EN اردو
क़रीब था कि हरारत से जल उठा होता | शाही शायरी
qarib tha ki hararat se jal uTha hota

ग़ज़ल

क़रीब था कि हरारत से जल उठा होता

महमूद तासीर

;

क़रीब था कि हरारत से जल उठा होता
दिया हथेली पे कुछ वक़्त अगर रुका होता

बनाया जाता अगर टहनियों से पिंजरे को
क़फ़स में कुछ तो परिंदों को आसरा होता

तुम्हारे जूड़े में है इस लिए सलामत है
ये फूल शाख़ पे पज़मुर्दा हो गया होता

ख़ुदा का शुक्र कि निस्बत क़लम से है वर्ना
हमारे हाथ भी बारूद लग चुका होता

बिलकता बच्चा कहाँ बाप से सँभलता है
जो होती माँ तो उसे चुप करा लिया होता

तुझे लगी ही नहीं इश्क़ की हवा 'तासीर'
वगर्ना तुझ में कोई और बोलता होता