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क़रीब भी तो नहीं हो कि आ के सो जाओ | शाही शायरी
qarib bhi to nahin ho ki aa ke so jao

ग़ज़ल

क़रीब भी तो नहीं हो कि आ के सो जाओ

रउफ़ रज़ा

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क़रीब भी तो नहीं हो कि आ के सो जाओ
सितारों जाओ कहीं और जा के सो जाओ

थकन ज़रूरी नहीं रात भी ज़रूरी नहीं
कोई हसीन बहाना बना के सो जाओ

कहानियाँ थी वो रातें कहानियाँ थे वो लोग
चराग़ गुल करो और बुझ-बुझा के सो जाओ

तरीक़-ए-कार बदलने से कुछ नया होगा
जो दूर है उसे नज़दीक ला के सो जाओ

ख़सारे जितने हुए हैं वो जागने से हुए
सो हर तरफ़ से सदा है के जा के सो जाओ

ये कार-ए-शे'र भी इक कार-ए-ख़ैर जैसा है
के ताक़ ताक़ जलो लौ बढ़ा के सो जाओ

उदास रहने की आदत बहुत बुरी है तुम्हें
लतीफ़े याद करो हँस-हँसा के सो जाओ