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क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो | शाही शायरी
qalb ko barf-ashna na karo

ग़ज़ल

क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो

हज़ीं लुधियानवी

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क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो
गुल किसी तौर ये दिया न करो

ज़िंदगी भी है एक मर्ग-ए-दवाम
तुम जो जीने का हक़ अदा न करो

जिस में फूलों पे पाँव धरना पड़े
इख़्तियार ऐसा रास्ता न करो

ज़हर पी जाओ बाँकपन के साथ
ज़हर चखने का तजरबा न करो

गुर सिखाए जो जंग-बाज़ी के
ऐसी दानिश को रहनुमा न करो

ज़ुल्म तो ज़ालिमों का शेवा है
क़हर है तुम जो तज्ज़िया न करो

सब ख़िज़ाँ ज़ादे कह रहे हैं 'हज़ीं'
याँ पे ज़िक्र-ए-गुल-ओ-सबा न करो