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क़ैस वो नातवान-ए-सहरा है | शाही शायरी
qais wo natawan-e-sahra hai

ग़ज़ल

क़ैस वो नातवान-ए-सहरा है

किशन कुमार वक़ार

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क़ैस वो नातवान-ए-सहरा है
कालबुद नीस्तान-ए-सहरा है

आतिश-ए-इश्क़ से है सीना गर्म
जलवा-ए-बर्क़ जान-ए-सहरा है

तेरे दीवाना के लिए ज़ंजीर
मौज-ए-रंग-ए-रवान-ए-सहरा है

ग़म में किस शो'ला-रू के दूद-ए-आह
आतिश-ए-दूदमान-ए-सहरा है

है जो फ़रहाद दावती-ए-कोह
क़ैस भी मेहमान-ए-सहरा है

हैफ़ पैक अपना रह-ग़लत-कर्दा
ताज़ा चश्म-ए-रवान-ए-सहरा है

है हर इक हर्फ़ चश्म-ए-ग़ूल 'वक़ार'
इस ग़ज़ल में बयान-ए-सहरा है