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क़द्र की रात बड़ी प्यारी है | शाही शायरी
qadr ki raat baDi pyari hai

ग़ज़ल

क़द्र की रात बड़ी प्यारी है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

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क़द्र की रात बड़ी प्यारी है
दिन इसी रैन का दरबारी है

मिरी आवाज़ पे मुर्की मुर्की
लहन-ए-दाऊद की सरदारी है

रंग लाएगी ये इक दिन आख़िर
मिरी फ़रियाद भी पिचकारी है

उस बबर-मर्द की अल्लाह रे क़ज़ा
जिस पे अल्लाह ने रज़ा वारी है

तूर बिजली की जवाँ-साल कड़क
नूर की रेशमीं किलकारी है

दाग़ कहते हैं जिसे कमले कवी
वो तो ईमान की चिंगारी है