क़ासिद उस का पयाम कुछ भी है
कह दुआ या सलाम कुछ भी है
सुख़न-ए-मेहर-ख़्वाह हर्फ़-ए-इताब
उस के मुँह का कलाम कुछ भी है
साफ़ या दुर्द-ए-बादा-ए-गुल-गूँ
साक़ी-ए-लाला-फ़ाम कुछ भी है
क्या ग़म-ए-हिज्र क्या सुरूर-ए-विसाल
गुज़राँ है दवाम कुछ भी है
उस रुख़ ओ ज़ुल्फ़ से कि दूँ तश्बीह
ख़ूबी-ए-सुब्ह-ओ-शाम कुछ भी है
याद में अपने यार के रहना
बेहतर और उस से काम कुछ भी है
तू जो 'बेदार' यूँ फिरे है ख़राब
पास-ए-नामूस-ओ-नाम कुछ भी है
ग़ज़ल
क़ासिद उस का पयाम कुछ भी है
मीर मोहम्मदी बेदार