EN اردو
क़ासिद उस का पयाम कुछ भी है | शाही शायरी
qasid us ka payam kuchh bhi hai

ग़ज़ल

क़ासिद उस का पयाम कुछ भी है

मीर मोहम्मदी बेदार

;

क़ासिद उस का पयाम कुछ भी है
कह दुआ या सलाम कुछ भी है

सुख़न-ए-मेहर-ख़्वाह हर्फ़-ए-इताब
उस के मुँह का कलाम कुछ भी है

साफ़ या दुर्द-ए-बादा-ए-गुल-गूँ
साक़ी-ए-लाला-फ़ाम कुछ भी है

क्या ग़म-ए-हिज्र क्या सुरूर-ए-विसाल
गुज़राँ है दवाम कुछ भी है

उस रुख़ ओ ज़ुल्फ़ से कि दूँ तश्बीह
ख़ूबी-ए-सुब्ह-ओ-शाम कुछ भी है

याद में अपने यार के रहना
बेहतर और उस से काम कुछ भी है

तू जो 'बेदार' यूँ फिरे है ख़राब
पास-ए-नामूस-ओ-नाम कुछ भी है