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प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था | शाही शायरी
pyas ke bedar hone ka koi rasta na tha

ग़ज़ल

प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था

इक़बाल अशहर

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प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
इस तरफ़ बादल नहीं थे उस तरफ़ दरिया न था

रात की तारीकियाँ पहचान लेती थीं उसे
रूह की आवाज़ था वो जिस्म का साया न था

तेरी यादें तो चराग़ों की क़तारें बन गईं
पहले भी घर में उजाला था मगर ऐसा न था

चंद क़तरों के लिए दरिया को क्यूँ तकलीफ़ दी
मेरी जानिब देख लेते मैं कोई सहरा न था

रात आई तो चराग़ों की बड़ी ताज़ीम थी
और जब गुज़री तो कोई पूछने वाला न था